दिल मेरा रक़्साँ है जब से अक़्ल इस शोरिश में है
लर्ज़िश ए पा आसमाँ या ये जहाँ लर्ज़िश में है,
आज से पहले ज़मीं की चाल तो ऐसी न थी
तुम ज़रा रफ़्तार देखो किस क़दर गर्दिश में है,
ठीक है तुझको मिला है मुझको भटकाने का काम
ये मगर क्या तू तो हर दम दावत ए लग़्ज़िश में है,
किस क़दर फिर एक हो जावें ज़मीन ओ आसमाँ
हम ज़मीन ओ आसमाँ वाले इसी साज़िश में हैं,
मुंतज़िर हैं तिश्नालब ये कौसर ओ तसनीम का
एक ज़ंजीर ए कशिश भी साक़ी ए महवश में है..!!
~अश्क अलमास