बेख़बर दुनिया को रहने दो ख़बर करते हो क्यूँ
दोस्तो मेरे दुखों को मुश्तहर करते हो क्यूँ ?
कोई दरवाज़ा न खोलेगा सदा ए दर्द पर
बस्तियों में शोरأओ ग़ुल शाम ओ सहर करते हो क्यूँ ?
मुझ से ग़ुर्बत मोल ले कर कौन घर ले जाएगा
तुम मुझे रुस्वा सर ए बाज़ार ए ज़र करते हो क्यूँ ?
आँख के अँधों को क्यूँ दिखलाते हो परवाज़ ए हर्फ़
काग़ज़ों पे अब तमाशा ए हुनर करते हो क्यूँ ?
तज़्किरा लिखते हो क्या मेरी शिकस्त ओ रेख़्त का
लफ़्ज़ की बस्ती में मअ’नी को खंडर करते हो क्यूँ ?
दोस्तो! बीनाई बख़्शेगी तुम्हें उनकी उड़ान
पंछियों को छोड़ दो बे बाल ओ पर करते हो क्यूँ ?
लफ़्ज़ अगर बोते तो फिर फ़स्ल ए मआनी काटते
दोस्तो ! अब शिकवा ए अहल ए हुनर करते हो क्यूँ ?
ज़ालिमों के साथ मिल जाओ रहोगे ऐश में
उम्र साजिद कस्मपुर्सी में बसर करते हो क्यूँ..??
~इक़बाल साजिद