हिज़्र ए गम क़ुर्ब में तन्हाई रुलाती होगी…

हिज़्र ए गम क़ुर्ब में तन्हाई रुलाती होगी
याद मेरी भी उसे फिर तो सताती होगी,

ऐ हवा जा के ख़बर मेरे सनम की लाना
पास तू उसके गुज़र के ही तो जाती होगी,

कोई मुखलिस मिल जाए तो फिर क्या कहने
अपने चेहरे को वो आँचल से छुपाती होगी,

होती होगी कभी दस्तक कोई दरवाज़े पर
दौड़ कर भागते हुए दरवाज़े पे जाती होगी,

प्यार से तोहफ़े दिए थे तो गनीमत समझे
तीर अपनी तो वो नज़रों के चलाती होगी,

खून से ख़त ही लिखे थे कभी उसने तो मुझे
कटी हुई ऊँगली कभी याद तो दिलाती होगी,

प्यार के दीप जलाए थे कभी चाहत से
अश्क आँखों से तो हर वक़्त बहाती होगी,

किस तरह सुकूं होता होगा मयस्सर उसको
हाथ पे अपने मेरा नाम लिख के मिटाती होगी..!!

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