ज़िंदगी का हर नफ़स मम्नून है तदबीर का
वाइज़ो धोखा न दो इंसान को तक़दीर का,
अपनी सन्नाई की तुझ को लाज भी है या नहीं
ऐ मुसव्विर देख रंग उड़ने लगा तस्वीर का,
आप क्यूँ घबरा गए ये आप को क्या हो गया ?
मेरी आहों से कोई रिश्ता नहीं तासीर का,
दिल से नाज़ुक शय से कब तक ये हरीफ़ाना सुलूक
देख शीशा टूटा जाता है तेरी तस्वीर का,
हर नफ़स की आमद ओ शुद पर ये होती है ख़ुशी
एक हल्क़ा और भी कम हो गया ज़ंजीर का,
फ़र्क़ इतना है कि तू पर्दे में और मैं बेहिजाब
वर्ना मैं अक्स ए मुकम्मल हूँ तेरी तस्वीर का..!!
~असद भोपाली