ज़िंदगी दी है तो जीने का हुनर भी देना
पाँव बख़्शें हैं तो तौफ़ीक़ ए सफ़र भी देना,
गुफ़्तुगू तू ने सिखाई है कि मैं गूँगा था
अब मैं बोलूँगा तो बातों में असर भी देना,
मैं तो इस ख़ाना बदोशी में भी ख़ुश हूँ लेकिन
अगली नस्लें तो न भटकें उन्हें घर भी देना,
ज़ुल्म और सब्र का ये खेल मुकम्मल हो जाए
उस को ख़ंजर जो दिया है मुझे सर भी देना..!!