ज़िन्दगी दी है तो जीने का हुनर भी देना
पाँव बख्शे है तो तौफ़ीक ए सफ़र भी देना,
गुफ़्तगू तू ने सिखाई है कि मैं गूँगा था
अब मैं बोलूँगा तो बातों में असर भी देना,
मैं तो इस खाना बदोशी में भी ख़ुश हूँ लेकिन
अगली नस्ले तो भटके उन्हें घर भी देना,
ज़ुल्म और सब्र का ये खेल मुक़म्मल हो जाए
उसको खंज़र जो दिया है मुझे सर भी देना..!!
~मेराज फ़ैज़ाबादी