यूँ ही तन्हाई में अब दिल को सजा देते है
नाम लिखते है तेरा लिख के मिटा देते है,
जब भी नाक़ाम ए मुहब्बत का कोई ज़िक्र करे
लोग हँसते है मेरा नाम बता देते है,
अब ख़ुशी की कोई तरक़ीब न सूझे
अब ये आलम है कि गम ही मज़ा देते है,
क्या ज़रूरत है कि देते हो ख़ुद को ये ज़हमत
लाओ हम ख़ुद ही नशेमन को जला देते है,
अब तसल्ली नहीं दी जाती मरीज़ ए गम को
अब तो देखने वाले भी मरने की दुआ देते है..!!