यूँ अपनी गज़लों में न जताता कि मोहब्बत क्या है
गर मिलते तो कर के दिखाता कि मोहब्बत क्या है,
कैसे सीने से लगा लूँ मैं तुझे, तू किसी और की है
काश !मेरी होती तो मैं बताता कि मोहब्बत क्या है,
ख़ूब समझाता मैं तुझे तेरी ही मिसालें दे दे कर
तुझ में भी मैं एहसास जगाता कि मोहब्बत क्या है,
दीवानों के मानिंद बना देता मैं हालत तेरी
फिर तुझे ख़ुद समझ आता कि मोहब्बत क्या है,
इश्क़ की आग खद ओ खाल भी गम कर देती
तुझे आईना याद दिलाता कि मोहब्बत क्या है,
ये तो अक्सर मैं याद दिला जाता हूँ आते जाते
वरना तू तो भूल ही जाती कि मोहब्बत क्या है..!!