ये क़र्ज़ तो मेरा है चुकाएगा कोई और
दुख मुझ को है और नीर बहाएगा कोई और,
क्या फिर यूँ ही दी जाएगी उजरत पे गवाही
क्या तेरी सज़ा अब के भी पाएगा कोई और ?
अंजाम को पहुँचूँगा मैं अंजाम से पहले
ख़ुद मेरी कहानी भी सुनाएगा कोई और,
तब होगी ख़बर कितनी है रफ़्तार ए तग़य्युर
जब शाम ढले लौट के आएगा कोई और,
उम्मीद ए सहर भी तो विरासत में है शामिल
शायद कि दिया अब के जलाएगा कोई और,
कब बार ए तबस्सुम मेरे होंठो से उठेगा
ये बोझ भी लगता है उठाएगा कोई और,
इस बार हूँ दुश्मन की रसाई से बहुत दूर
इस बार मगर ज़ख़्म लगाएगा कोई और,
शामिल पस ए पर्दा भी हैं इस खेल में कुछ लोग
बोलेगा कोई होंठ हिलाएगा कोई और..!!
~आनिस मुईन