ये क्या रुत है अब की रुत में देखें ज़र्द गुलाब
चेहरे सूखे फूल ख़िज़ाँ के आँखें ज़र्द गुलाब,
फूल से बच्चे भी ख़्वाबों के ईंधन बनते जाएँ
देखें कैसी रुत फूलों की ओढें ज़र्द गुलाब,
एक अलामत हो गई अपने ख़्वाबों की तफ़्सीर
सोचें अपने ख़्वाबों को तो लिक्खें ज़र्द गुलाब,
दीवारों पर अपनी नस्ल का नौहा लिखते जाएँ
जिस के दिन भी ज़हरीले हैं रातें ज़र्द गुलाब,
झूट के ज़हरीले पंजों में जकड़े मुर्दा लोग
बातें उड़ती ख़ुशबू जैसी सोचें ज़र्द गुलाब,
अब आँगन में सन्नाटे की डायन नाचे गाए
अब बच्चों के बदले घर में खेलें ज़र्द गुलाब,
आने वाले शायद अपने दुख को समझेंगे
दानिश यार किताबों में हम रखे ज़र्द गुलाब..!!
~नून मीम दनिश

























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