ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है
कहीं एक हसीन सा ख़्वाब है कहीं जानलेवा अज़ाब है,
कहीं छाँव है कहीं धूप है कहीं और ही कोई रूप है
कई चेहरे इस में छुपे हुए एक अजीब सी ये नक़ाब है,
कहीं खो दिया कहीं पा लिया कहीं रो लिया कहीं गा लिया
कहीं छीन लेती है हर ख़ुशी कहीं मेहरबाँ बेहिसाब है,
कहीं आँसुओं की है दास्ताँ कहीं मुस्कुराहटों का बयाँ
कहीं बरकतों की हैं बारिशें कहीं तिश्नगी बेहिसाब है..!!
~राजेश रेड्डी
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