वो मुहब्बत गई वो फ़साने गए
जो खज़ाने थे अपने खज़ाने गए,
चाहतो का वो दिलकश ज़माना गया
सारे मौसम थे कितने सुहाने गए,
रेत के वो घरौंदे कहीं गुम हुए
अपने बचपन के सारे ठिकाने गए,
वो गुलेले तो फिर भी बना ले मगर
अब वो नज़रे गई अब वो नज़ारे गए,
अपने नामो के सारे शज़र कट गए
वो परिंदे गए आशियाने गए,
ज़िद्द में सूरज को तकने की वो ज़ुर्रते
यार आज़ाद अब वो ज़माने गए..!!
~अज़ीज़ आज़ाद