वो हँस देते हैं जब महफ़िल में मेरा नाम आता है
ख़ुदा की देन है दीवानापन यूँ काम आता है,
ग़म ए दौर ए मय ओ साग़र से बाला है मेरी रिंदी
जो उठ जाती हैं वो नज़रें तो मुझ तक जाम आता है,
किसी की हर अदा ए सर्द मेहरी को ख़ुदा रखे
न हँसना काम आता है न रोना काम आता है,
ये कौन आहू मिज़ाज ओ गेसू ए मुश्कीं ब दोश आया
कि देखे से ज़बानों पर ख़ुदा का नाम आता है,
बहार ए नौ भी आए लेकिन अब के देखना ये है
गरेबाँ काम आता है कि दामाँ काम आता है,
ये देखें ख़ंदा ए गुल का तमाशा देखने वाले
हँसी की आड़ ले कर मौत का पैग़ाम आता है,
बहार ए लाला ओ गुल पर मुझे हक़ हो न हो लेकिन
चमन के रहने वालों में तो मेरा नाम आता है,
रईस उस ने तो कुछ ऐसा भुलाया है कि क्या कहिए
मगर उस का तसव्वुर है कि सुब्ह ओ शाम आता है..!!
~रईस रामपुरी
सुना है जब से कि तुम को भी ग़म गवारा है
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