वो दूर ख़्वाबों के साहिलों में अज़ाब किस के हैं ख़्वाब किस के
ये कौन जाने कि अब रुतों में अज़ाब किस के हैं ख़्वाब किस के ?
ये कौन जाने कि किस का चेहरा ग़ुबार लम्हों में ख़ाक होगा
ये कौन जाने कि अब दिनों में अज़ाब किस के हैं ख़्वाब किस के ?
ये ज़र्द चेहरे की सारी ज़र्दी ये बाँझ आँखों का रतजगा पन
ये पूछते हैं कि आइनों में अज़ाब किस के हैं ख़्वाब किस के ?
जबीं पे उभरी हुई शिकन में ये किस की यादों का अक्स ए ग़म है
ये वक़्त के बहते दाएरों में अज़ाब किस के हैं ख़्वाब किस के ?
ये धूप छाँव ये ख़ार कलियाँ ये साहिलों की हवा की ख़ुशबू
ये इस्तिआरों अलामतों में अज़ाब किस के हैं ख़्वाब किस के ?
ये कौन जाने कि कर्ब क्या है उदास लहजे में दर्द क्या है ?
ये कौन जाने कि अब दिलों में अज़ाब किस के हैं ख़्वाब किस के ?
तमाम ख़िल्क़त दुखों की तख़्ती गले में ले कर खड़ी हुई है
जो रोज़ होते हैं सानेहों में अज़ाब किस के हैं ख़्वाब किस के ?
ये जुर्म ए गंदुम हमारा विर्सा सही मगर ये हयात दानिश
जो काटते हैं हम इन दुखों में अज़ाब किस के हैं ख़्वाब किस के ??
~नून मीम दनिश

























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