वो बेवफ़ा है उसे बेवफ़ा कहूँ कैसे
बुरा ज़रूर है लेकिन बुरा कहूँ कैसे ?
जो कश्तियों को डुबोता है ला के साहिल पर
तुम्ही बताओ उसे नाख़ुदा कहूँ कैसे ?
ये और बात बुरे को बुरा नहीं कहता
बुरा बुरा है बुरे को भला कहूँ कैसे ?
वो मेरी साँसों में दिल में नज़र में ग़ज़लों में
मैं अपने आप से इस को जुदा कहूँ कैसे ?
जो तुझ से कहना है दुनिया से वो छुपाना है
अगर ग़ज़ल न कहूँ तो बता कहूँ कैसे ?
हवा की शह पे जलाता है घर ग़रीबों के
नवाज़ ऐसे दिए को दिया कहूँ कैसे..??
~नवाज़ देवबंदी