उसे हम याद आते हैं फक़त फ़ुर्सत के लम्हों में

उसे हम याद आते हैं फक़त फ़ुर्सत के लम्हों में
मगर ये बात भी सच है उसे फ़ुर्सत नहीं मिलती,

हम तस्लीम करते हैं हमें फ़ुर्सत नहीं मिलती
मगर जब याद करते हैं ज़माना भूल जाते हैं,

ज़माना भूल जाते हैं तेरी एक दीद की खातिर
ख्यालों से निकलते हैं तो है तो सदियाँ बीत जाती हैं,

सदियाँ बीत जाती हैं ख़्यालों से निकलने में
मगर जब याद आती है तो आँखें भीग जाती हैं..!!

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