टूट कर बिखरे हुए इन्सान कहाँ जाएँगे ?
दूर तक सन्नाटा है नादान कहाँ जाएँगे ?
रिश्ते जो खाक़ हुए नफ़रत की आग में
अपनों में रहने के अरमान कहाँ जाएँगे ?
छप्परो में सोते है आराम करने दीजिए
तेज़ तपती धूप में मेहमान कहाँ जाएँगे ?
हो सके तो पहले कड़वाहट निकालिए
सोच लेंगे कल के फ़रमान कहाँ जाएँगे,
मिट जाएँ मुल्क पर अलग बात है मगर
छोड़ कर प्यारा हिंदुस्तान कहाँ जाएँगे ?
कलयुगी शहंशाह करने लगा है फ़ैसला
ये राम कहाँ जाएँगे, रहमान कहाँ जाएँगे ?
माना दीवारों से सारी किलेबन्दी हो गई
अब मेरे शहर के निगेहबान कहाँ जाएँगे ?
मज़हब के नाम पर तुमने सरहद तो बना ली
मगर बूढ़े परिंदों के मेज़बान कहाँ जाएँगे..??