तुख़्म ए नफ़रत बो रहा है आदमी…

तुख़्म ए नफ़रत बो रहा है आदमी
आदमियत खो रहा है आदमी,

ज़िंदगी का नाम है जेहद ए मुदाम
सो रहा है सो रहा है आदमी,

आगही है शर्त जीने के लिए
फिर भी ग़ाफ़िल हो रहा है आदमी,

चल सका न राह पर अस्लाफ़ की
नक़्श ए पा अब खो रहा है आदमी,

काशिफ़ ए ज़ात ए ख़ुदा था सरबसर
अब नहीं है जो रहा है आदमी,

अपने ही आ’माल पर पछता के अब
रो रहा है रो रहा है आदमी,

क़ंद गुफ़्तारी ऐ ‘मोहसिन’ अब कहाँ
ज़हर आसा हो रहा है आदमी..!!

~दाऊद मोहसिन

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