तेरी यादें, तेरी बातें, तेरी ख़ामोशी, तेरा फ़िक्र
तेरा ज़िक्र, अब सब कुछ आसान सा लगता है,
तू मुझ में रहे या मैं तुझ में रहूँ एक ही बात है
यूँ तेरा छोड़ के जाना मुझे नादान सा लगता है,
कुछ बोलते नहीं लब ये तेरे ख़ामोश से रहते है
वो लफ्ज़ ज़िन्दा तो है मगर बेज़ुबान सा लगता है,
क्या खोया, क्या पाया, क्या से क्या हुए इश्क़ में
जाने क्या ज़ुल्म हुआ, दिल ये बेज़ान सा लगता है,
अब कुछ होश नहीं रहता, न कुछ ख़बर है रहती
तेरी यादो में खोया मेरा ये दिल हैरान सा लगता है,
वो थी कभी हमारी, अब किसी और की मुहब्बत है
इस वजह से वो शख्स बड़ा परेशान सा लगता है,
ज़रा देखो उस रकीब की बाँहों में कौन है छुपी बैठी
उसका चेहरा मुझे क्यूँ न जाने मेरी जान सा लगता है,
जल गए मकाँ मेरा, यूज़ कोई फ़िक्र ही नहीं है मेरी
उसका आशियाँ भी अब मुझे आसमान सा लगता है..!!