तेरे फ़िराक़ के लम्हे शुमार करते हुए
बिखर गए हैं तेरा इंतिज़ार करते हुए,
तुम्हें ख़बर ही नहीं है कि कोई टूट गया
मोहब्बतों को बहुत पाएदार करते हुए,
मैं मुस्कुराता हुआ आइने में उभरूँगा
वो रो पड़ेगी अचानक श्रृंगार करते हुए,
वो कह रही थी समुंदर नहीं हैं आँखें हैं
मैं उन में डूब गया ऐतबार करते हुए,
भँवर जो मुझ में पड़े हैं वो मैं ही जानता हूँ
तुम्हारे हिज्र के दरिया को पार करते हुए..!!