तर्क ए ग़म गवारा है और न ग़म का यारा है

तर्क ए ग़म गवारा है और न ग़म का यारा है
अब तो दिल की हर धड़कन आ’लम ए आश्कारा है,

हम जैसे बेसहारों को आपका सहारा है
आप ही को दुख सुख में उम्र भर पुकारा है,

मौज ख़ुद सफ़ीना है बहर ख़ुद किनारा है
नाख़ुदा से क्या मतलब जब ख़ुदा हमारा है,

हो चला यक़ीन जब से वो हसीं हमारा है
ये ख़ुश ए’तिमादी भी एक बड़ा सहारा है,

ये तो कहिए क्या उसको आप छोड़ सकते हैं
जिसने मरते मरते भी आप ही को पुकारा है,

लुत्फ़ ए बंदगी तुमसे और मेरी ज़िंदगी तुमसे
तुम नहीं तो फिर किस को ज़िंदगी गवारा है,

किस ख़ता पे झोंकी है ख़ाक मेरी आँखों में
क्या मक़ाम था मेरा और कहाँ उतारा है,

हासिल ए मुराद ए दिल चश्म ए इल्तिफ़ाफ़ उसकी
सारी काएनात अपनी वो अगर हमारा है,

फिर उसी पे मरने को जी उठूँगा महशर में
फिर वही जिलाएगा जिस ने मुझको मारा है,

बच के सब की नज़रों से हमने आँखों आँखों में
अपने यार का सदक़ा बारहा उतारा है,

ये तो साफ़ ज़ाहिर है हम उसी के बंदे हैं
कोई उससे जा पूछे वो भी क्या हमारा है ?

जो न देख सकता हो चाक दामनी मेरी
चाक पर्दा ए इस्याँ कब उसे गवारा है,

हम से पूछिए साहिब इंतिज़ार की घड़ियाँ
हमने रात काटी है, हमने दिन गुज़ारा है,

एक तरफ़ तमन्नाएँ एक तरफ़ ख़ुशी उनकी
हाय किस दोराहे पर कश्मकश ने मारा है,

बेहुनरी सही लेकिन बेवफ़ा नहीं ‘कामिल’
ये तुम्हारा बंदा है और फ़क़त तुम्हारा है..!!

~कामिल शत्तारी

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