एक मय्यत ज़मीं तले उतरी एक मय्यत नहीं उठाई गई…
उसमें कोई रईस मुज़रिम था जो कहानी नहीं सुनाई गई, एक मय्यत ज़मीं तले उतरी …
उसमें कोई रईस मुज़रिम था जो कहानी नहीं सुनाई गई, एक मय्यत ज़मीं तले उतरी …
तुम्हारी सोच, तुम्हारे गुमाँ से बाहर हम खड़े हुए है सफ ए दोस्तां से बाहर …
वफ़ादारी पे दे दी जान मगर ग़द्दारी नहीं आई हमारे खून में अब तक ये …
चुनाव से पहले मशरूफ़ होते है सारे ही उम्मीदवार दिन रात मीटिंगे होती है इन …
ज़िन्दा रहें तो क्या है जो मर जाएँ हम तो क्या दुनियाँ से ख़ामोशी से …
वतन की सर ज़मी से इश्क़ ओ उल्फ़त ही नहीं खटकती जो रहे दिल में …