इश्क़ सहरा है कि दरियाँ कभी सोचा तुमने…

adhure khwabo ki anokhi

इश्क़ सहरा है कि दरियाँ कभी सोचा तुमने तुझसे क्या है मेरा नाता कभी सोचा तुमने ? हाँ

यही कम नहीं है ज़िन्दगी के लिए…

yahi kam nahi hai zindagi ke liye

यही कम नहीं है ज़िन्दगी के लिए यहाँ चैन मिल जाए दो घड़ी के लिए, दिल ए ज़ार

ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है…

sukhanwari ka bahana banata rahta hoon

ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है वही होता है जो मंज़ूर ए ख़ुदा होता है,

किस तरह मिलें कोई बहाना नहीं मिलता…

kis tarah mile koi bahana nahi milta

किस तरह मिलें कोई बहाना नहीं मिलता हम जा नहीं सकते उन्हें आना नहीं मिलता, फिरते हैं वहाँ

वो जिस का अक्स लहू को जगा दिया करता…

main usko khwab khwab me sada diya karta

वो जिस का अक्स लहू को जगा दिया करता मैं ख़्वाब ख़्वाब में उस को सदा दिया करता,

उसके नज़दीक ग़म ए तर्क ए वफ़ा कुछ भी नहीं…

uske nazdik gam e tark e wafa kuch bhi nahi

उसके नज़दीक ग़म ए तर्क ए वफ़ा कुछ भी नहीं मुतमइन ऐसा है वो जैसे हुआ कुछ भी

मरीज़ ए इश्क़ का मर्ज़ वो बुखार बताते हैं…

mariz e ishq ke marz ko wo bukhar batate hai

मरीज़ ए इश्क़ का मर्ज़ वो बुखार बताते हैं शख़्स एक है पर क़ातिल बेशुमार बताते हैं, नशा

अचानक दिलरुबा मौसम का दिल आज़ार हो जाना…

achanak dilruba mausam ka dil azar ho jana

अचानक दिलरुबा मौसम का दिल आज़ार हो जाना दुआ आसाँ नहीं रहना सुख़न दुश्वार हो जाना, तुम्हें देखें

अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं…

abhi kuch aur karishme gazal ke dekhte hai

अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं ‘फ़राज़’ अब ज़रा लहजा बदल के देखते हैं, जुदाइयाँ तो

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता…

kabhi kisi ko muqammal jahan nahi milta

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता, तमाम शहर में ऐसा नहीं