कुछ एक रोज़ में मैं चाहतें बदलता हूँ…
कुछ एक रोज़ में मैं चाहतें बदलता हूँ अगर न सीट मिले तो बसें बदलता …
कुछ एक रोज़ में मैं चाहतें बदलता हूँ अगर न सीट मिले तो बसें बदलता …
जुदाई में तेरी आँखों को झील करते हुए सुबूत ज़ाएअ’ किया है दलील करते हुए, …
हरगिज़ किसी भी तौर किसी के न हो सके हम उसके बाद और किसी के …
एक रात लगती है एक सहर बनाने में हमने क्यों नहीं सोचा हमसफ़र बनाने में …
दिन रात उसके हिज्र का दीमक लगे लगे दिल के तमाम ख़ाने मुझे खोखले लगे, …
छोड़ कर ऐसे गया है छोड़ने वाला मुझे दोस्तो उसने कहीं का भी नहीं छोड़ा …
अब दरमियाँ कोई भी शिकायत नहीं बची या’नी क़रीब आने की सूरत नहीं बची, अब …
अगर जो प्यार ख़ता है तो कोई बात नहीं क़ज़ा ही इसकी सज़ा है तो …
प्यास जो उम्र भर न बुझी पुरानी होगी कभी तो आख़िर वो प्यास बुझानी होगी, …