कुछ ग़म ए जानाँ कुछ ग़म ए दौराँ…
कुछ ग़म ए जानाँ कुछ ग़म ए दौराँ दोनों मेरी ज़ात के नाम एक ग़ज़ल …
कुछ ग़म ए जानाँ कुछ ग़म ए दौराँ दोनों मेरी ज़ात के नाम एक ग़ज़ल …
गर्मी ए हसरत ए नाकाम से जल जाते हैं हम चराग़ों की तरह शाम से …
गँवाई किस की तमन्ना में ज़िन्दगी मैं ने वो कौन है जिसे देखा नहीं कभी …
बात करते है ख़ुशी की भी तो रंज़ के साथ वो हँसाते भी है ऐसा …
अज़ीब कर्ब में गुज़री जहाँ जहाँ गुज़री अगरचे चाहने वालो के दरमियाँ गुज़री, तमाम उम्र …
जो पूछती हो तो सुनो ! कैसे बसर होती है रात खैरात की, सदके की …
क्या सरोकार अब किसी से मुझे वास्ता था तो था बस तुझी से मुझे, बेहिसी …
रखा न अब कहीं का दिल ए बेक़रार ने बर्बाद कर दिया ग़म ए बे …
हमने कैसे यहाँ गुज़ारी है अश्क खुनी है आह ज़ारी है, हम ही पागल थे …
याद आता है मुझे छोड़ के जाने वाला मेरी हर शाम को रंगीन बनाने वाला, …