सुख़न के शौक़ में तौहीन हर्फ़ की नहीं की

सुख़न के शौक़ में तौहीन हर्फ़ की नहीं की
कि हम ने दाद की ख़्वाहिश में शाएरी नहीं की,

जो ख़ुदपसंद थे उन से सुख़न किया कम कम
जो कज कुलाह थे उन से तो बात भी नहीं की,

कभी भी हम ने न की कोई बात मस्लहतन
मुनाफ़िक़त की हिमायत, नहीं, कभी नहीं की,

दिखाई देता कहाँ फिर अलग से अपना वजूद
सो हम ने ज़ात की तफ़्हीम आख़िरी नहीं की,

उसे बताया नहीं है कि मैं बदन में नहीं
जो बात सब से ज़रूरी है वो अभी नहीं की,

ब नाम ए ख़ुश नफ़सी हम तो आह भरते रहे
कि सिर्फ़ रंज किया हम ने, ज़िंदगी नहीं की,

हमेशा दिल को मयस्सर रही है दौलत ए हिज्र
जुनूँ के रिज़्क़ में उस ने कभी कमी नहीं की,

ब सद ख़ुलूस उठाता रहा सभी के ये नाज़
हमारे दिल ने हमारी ही दिलबरी नहीं की,

जिसे वतीरा बनाए रही वो चश्म ए ग़ज़ाल
वो बेरुख़ी की सुहुलत हमें भी थी, नहीं की,

है एक उम्र से मामूल रोज़ का इरफ़ान
दुआ ए रद्द ए अना हम ने आज ही नहीं की..!!

~इरफ़ान सत्तार

हर एक शक्ल में सूरत नई मलाल की है

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