सदाक़तों को ये ज़िद है ज़बाँ तलाश करूँ

सदाक़तों को ये ज़िद है ज़बाँ तलाश करूँ
जो शय कहीं न मिले मैं कहाँ तलाश करूँ ?

मेरी हवस के मुक़ाबिल ये शहर छोटे हैं
ख़ला में जा के नई बस्तियाँ तलाश करूँ,

अज़िय्यतों की भी अपनी ही एक लज़्ज़त है
मैं शहर शहर फिरूँ नेकियाँ तलाश करूँ,

मकाँ फ़रेब ख़ुशामद मआश समझौते
बराए कश्ती ए जाँ बादबाँ तलाश करूँ,

तो कब तलक यूँ ही सूरज तले रहेगी धूप
तेरे लिए भी कोई साएबाँ तलाश करूँ,

गुहर नसीब सदफ़ का तो ज़िक्र क्या अंजुम
मैं साहिलों के लिए सीपियाँ तलाश करूँ..!!

~अंजुम ख़लीक़

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