रह के मक्कारों में मक्कार हुई है दुनिया

रह के मक्कारों में मक्कार हुई है दुनिया
मेरे दुश्मन की तरफ़दार हुई है दुनिया,

पाक दामन थी ये जब तक थी मेरे हुजरे में
छोड़ के मुझको गुनहगार हुई है दुनिया,

ऐन मुमकिन है के बदनाम मुझे भी कर दे
मेरी शोहरत से जो बेज़ार हुई है दुनिया,

तू नहीं था तो ये रौनक़ भी कहाँ थी पहले
तेरे आने से ही गुलज़ार हुई है दुनिया,

अपनी पलकों से झटकते हुए कुछ ख़्वाबों को
ले के अंगड़ाइयाँ बेदार हुई है दुनिया,

कुछ दिनों से ये ख़बर गूँज रही है ‘मोहसिन’
एक शाइ’र की तलबगार हुई है दुनिया..!!

~मोहसिन आफ़ताब केलापुरी

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