रास्ते अपनी नज़र बदला किए
हम तुम्हारा रास्ता देखा किए,
अहल ए दिल सहरा में गुम होते रहे
ज़िंदगी बैठी रही पर्दा किए,
एहतिमाम ए दार ओ ज़िंदाँ की क़सम
आदमी हर अहद ने पैदा किए,
हम हैं और अब याद का आसेब है
उस ने वादे तो कई ईफ़ा किए,
हाए रे वहशत कि तेरे शहर का
हम सबा से रास्ता पूछा किए..!!
~राही मासूम रज़ा





















