एक शख्स की खातिर ज़बर कर बैठा हूँ…

एक शख्स की खातिर ज़बर कर बैठा हूँ
मैं ज़िन्दगी को इधर उधर कर बैठा हूँ,

उस लम्हे पे तो क़यामत बरपा करनी थी
मगर न जाने क्यूँ अब सबर कर बैठा हूँ,

अहद था शिद्दत ए अज़ीयत ए फ़िराक से न रोऊँगा
अहद टूट गया जानाँ मैं चश्म ए तर कर बैठा हूँ,

वो नफ़ीस मिज़ाजी छीन ली ज़माने ने
आके देख अब दिल को पत्थर कर बैठा हूँ,

तुझ जैसे वायदा शिकन पे ऐतबार
नहीं करना चाहिए मगर मैं कर बैठा हूँ,

मेरी अब ख्वाहिश ए मुख़्तसर वस्ल नहीं
इसी लिए वस्ल को अब हिज़्र कर बैठा हूँ..!!

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