राहें वही खड़ी थी मुसाफ़िर भटक गया
एक लफ्ज़ आते आते लबो तक अटक गया,
जिस पेड़ की वो छाँव में खेला बड़ा हुआ
क्या रोग लग गया कि उसी से लटक गया,
दिल से उतर गया वो जो चाहे जिधर गया
कानपुर गया हो कि फिर कटक गया,
किसको जला रहे हो मेरा हाथ थाम कर
लगता है कोई हाथ तेरा भी झटक गया,
जिसको नवाब लफ्ज़ मेरा हर अजीज़ था
क्यूँ उसको आज लफ्ज़ ए मुहब्बत खटक गया..!!