पोशीदा सब की आँख से दिल की किताब रख
मुमकिन हो गर तो ज़ख़्म के बदले गुलाब रख,
एहसान करके भूल जा एहसान मत जता
किस किस को क्या दिया है कभी मत हिसाब रख,
सेहन ए चमन के ग़ुंचों में तक़्सीम कर ख़ुशी
शबनम की तरह क़ल्ब की आँखें पुर आब रख,
दीमक ज़दा कुतुब से न अलमारियाँ सजा
पढ़ने को तजरबात की ज़िंदा किताब रख,
नाकामियों की धूप में कटती है ज़िंदगी
दिल के सुकून के लिए आँखों में ख़्वाब रख,
हर ज़र्रा को चमकने का अंदाज़ बख़्श दे
हर सुब्ह ए नौ के वास्ते एक आफ़्ताब रख,
शाहीन ज़िंदगी को बनाना हो कामयाब
ख़िश्त ए सवाल के लिए संग ए जवाब रख..!!
~उस्मान शाहीन
जब भी ख़ल्वत में मेरी शम्अ जली शाम के बाद
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