दिल वालो क्यूँ दिल सी दौलत यूँ बे कार लुटाते हो
दिल वालो क्यूँ दिल सी दौलत यूँ बे कार लुटाते हो क्यूँ इस अँधियारी बस्ती में प्यार की
दिल वालो क्यूँ दिल सी दौलत यूँ बे कार लुटाते हो क्यूँ इस अँधियारी बस्ती में प्यार की
दरख़्त सूख गए रुक गए नदी नाले ये किस नगर को रवाना हुए हैं घर वाले ? कहानियाँ
जब कोई कली सेहन ए गुलिस्ताँ में खिली है शबनम मेरी आँखों में वहीं तैर गई है, जिस
उस ने जब हँस के नमस्कार किया मुझ को इंसान से अवतार किया, दश्त ए ग़ुर्बत में दिल
तेरी आँखों का अजब तुर्फ़ा समाँ देखा है एक आलम तेरी जानिब निगराँ देखा है, कितने अनवार सिमट
ये जो शब के ऐवानों में इक हलचल एक हश्र बपा है ये जो अंधेरा सिमट रहा है
हम ने सुना था सहन ए चमन में कैफ़ के बादल छाए हैं हम भी गए थे जी
ये सोच कर न माइल ए फ़रियाद हम हुए आबाद कब हुए थे कि बर्बाद हम हुए, होता
शेर होता है अब महीनों में ज़िंदगी ढल गई मशीनों में, प्यार की रौशनी नहीं मिलती उन मकानों
मीर ओ ग़ालिब बने यगाना बने आदमी ऐ ख़ुदा ख़ुदा न बने, मौत की दस्तरस में कब से