मुद्दत हुई उस जान ए हया ने हमसे ये इक़रार किया
मुद्दत हुई उस जान ए हया ने हमसे ये इक़रार किया जितने भी बदनाम हुए हम उतना उसने
मुद्दत हुई उस जान ए हया ने हमसे ये इक़रार किया जितने भी बदनाम हुए हम उतना उसने
दीदा ओ दिल में कोई हुस्न बिखरता ही रहा लाख पर्दों में छुपा कोई सँवरता ही रहा, रौशनी
लाख आवारा सही शहरों के फ़ुटपाथों पे हम लाश ये किस की लिए फिरते हैं इन हाथों पे
आए क्या क्या याद नज़र जब पड़ती इन दालानों पर उस का काग़ज़ चिपका देना घर के रौशनदानों
तुम पे क्या बीत गई कुछ तो बताओ यारो मैं कोई ग़ैर नहीं हूँ कि छुपाओ यारो, इन
हौसला खो न दिया तेरी नहीं से हम ने कितनी शिकनों को चुना तेरी जबीं से हम ने,
हर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे है मुझे ये ज़िंदगी तो कोई बददुआ लगे है मुझे,
दिल को हर लम्हा बचाते रहे जज़्बात से हम इतने मजबूर रहे हैं कभी हालात से हम, नशा
ऐ दर्द ए इश्क़ तुझ से मुकरने लगा हूँ मैं मुझ को संभाल हद से गुज़रने लगा हूँ
अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए अपनी नज़र में आप को रुस्वा किया न जाए,