ज़रीदे में छपी है एक ग़ज़ल दीवान जैसा है…
ज़रीदे में छपी है एक ग़ज़ल दीवान जैसा है ग़ज़ल का फ़न अभी भी रेत के मैदान जैसा
ज़रीदे में छपी है एक ग़ज़ल दीवान जैसा है ग़ज़ल का फ़न अभी भी रेत के मैदान जैसा
ज़िन्दगी बस एक ये लम्हा मुझे भी भा गया आज बेटे के बदन पर कोट मेरा आ गया,
समझता खूब है वो भी बयान की कीमत चुका रहा है जो अब भी ज़ुबान की कीमत, इसी
ज़िन्दगी दी है तो जीने का हुनर भी देना पाँव बख्शे है तो तौफ़ीक ए सफ़र भी देना,
काँटे ही चुभन दे ज़रूरी तो नहीं फूल भी नश्तर चभोते है, बारिश ही भिगोए तन मन ज़रूरी
दुश्मन मेरी ख़ुशियों का ज़माना ही नहीं था तुमने भी कभी अपना तो जाना ही नहीं था, क्या
ज़ख्म ए तन्हाई में ख़ुशबू ए हिना किसकी थी साया दीवार पे मेरा था, सदा किसकी थी ?
ना जाने कैसी तक़दीर पाई है जो आया आज़मा के चला गया, कल तक गले लगाने वाला भी
कभी राहो में मिली होगी तू तुझे मैंने कभी देखा तो होगा, हर दिल कुछ कहता है इस
सफ़र है धूप का इसमें क़याम थोड़ी है बला है इश्क़ ये बच्चों का काम थोड़ी है, किसी