नदी के पार उजाला दिखाई देता है

नदी के पार उजाला दिखाई देता है
मुझे ये ख़्वाब हमेशा दिखाई देता है,

बरस रही हैं अक़ीदत की बदलियाँ लेकिन
शुऊर आज प्यासा दिखाई देता है,

चराग़ ए मंज़िल ए फ़र्दा जलाएगा एक रोज़
वो राहगीर जो तन्हा दिखाई देता है,

तेरी निगाह ने हल्का सा नक़्श छोड़ा था
मगर ये ज़ख़्म तो गहरा दिखाई देता है,

किसी ख़याल की मिश्अल किसी सदा का चराग़
हर एक सम्त अंधेरा दिखाई देता है,

‘अमीर’ पूछ रहा हूँ ग़म ए ज़माना से
हमारे घर में तुझे क्या दिखाई देता है..!!

~अमीर क़ज़लबाश

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