मुझे प्यार से तेरा देखना मुझे छुप छुपा के वो देखना
मेरा सोया जज़्बा उभारना तुम्हें याद हो कि न याद हो,
रह ओ रस्म क़ल्ब ओ निगाह के वो तुम्हारे दावे निबाह के
वो हमारा शेख़ी बघारना तुम्हें याद हो कि न याद हो,
वो हमारी छेड़ वो शोख़ियाँ वो हमारा काटना चुटकियाँ
वो तुम्हारा कुहनी का मारना तुम्हें याद हो कि न याद हो,
कभी सर्द आहों के सिलसिले कभी ठंडी साँसों के मश्ग़ले
वो हमारी नक़लें उतारना तुम्हें याद हो कि न याद हो,
वो तुम्हारा शाएर ए ख़ुशनवा जिसे लोग कहने लगे फ़ना
वो निसार कह के पुकारना तुम्हें याद हो कि न याद हो..!!
~फ़ना निज़ामी कानपुरी