मुझको अपने बैंक की क़िताब दीजिए

मुझको अपने बैंक की क़िताब दीजिए
देश की तबाही का हिसाब दीजिए,

गाँव गाँव ज़ख़्मी फिजाएँ हो गई
ज़हरीली घर की हवाएँ हो गई,
महँगी शराब से दवाएँ हो गई
जाइए आवाम को जवाब दीजिए
देश की तबाही का हिसाब दीजिए,

लोग जो ग़रीब थे हक़ीर हो गए
आप तो ग़रीब से अमीर हो गए
यानि हुज़ूर बेज़मीर हो गए
ख़ुद को बेज़मीरी का ख़िताब दीजिए
देश की तबाही का हिसाब दीजिए,

जेब है आवाम की सफाई कीजिए
लूट के गरीबो की भलाई कीजिए
कुछ तो निगाहों को हिजाब दीजिए
देश की तबाही का हिसाब दीजिए,

कैसी कैसी देखो योजनायें खा गए
बेच कर ये अपनी आत्माएँ खा गए
मार के मरीज़ों की दवाएँ खा गए
इन्हें पद्मश्री का ख़िताब दीजिए
देश की तबाही का हिसाब दीजिए..!!

~मंज़र भोपाली

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