मुझे आरज़ू जिसकी है उसको ही ख़बर नहीं
नज़रअंदाज़ कर दूँ ऐसी मेरी कोई नज़र नहीं,
मना पाबंदियाँ हज़ार है इक़रार ए इश्क़ पर
लेकिन असरार ए इश्क़ में कोई असर नहीं,
कभी तो सुकूं की नींद सोए हम भी सारी रात
मगर उसके जैसा तो और कोई सितमगर नहीं,
आरज़ू है कि बहक जाऊँ उसकी आग़ोश में
उसके दिल के सिवा और कोई मेरा घर नहीं..!!