मुफ़लिसी में दिन बिताते है यहाँ
फिर भी सपने हम सजाते है यहाँ,
मज़हबी बातें उठा कर लोग कुछ
आपसी झगड़े बढ़ाते है यहाँ,
दूसरो के गम को है कम आँकते
अपने गम में छटपटाते है यहाँ,
झूठी बातों का ढिंढोरा पिट कर
सच से कैसे मुँह छुपाते है यहाँ,
ज़िन्दगी भर साथ रह कर भी अलग
रिश्ते इस तरह भी निभाते है यहाँ,
अपने गिरेबाँ में कोई झाँकता नहीं
बस गैरो पे सब मुस्कुराते है यहाँ..!!