मुद्दत हुई अपनी आँखों को

मुद्दत हुई अपनी आँखों को
क्यों अश्क फ़िशानी याद आई ?

क्या दिल ने उन्हें फिर याद किया
फिर भूली कहानी याद आई ?

बरखा की बरसती रातों में
जब भूली कहानी याद आई,

फिर अपना फ़साना याद आया
फिर तेरी जवानी याद आई,

कुछ सर्द सी आहें दाग़ ए जिगर
आँखों की नमी और दिल की ख़लिश,

रह रह के वो मिले और बिछड़े
साजन की हर एक निशानी याद आई,

गुलशन की फ़ज़ा से जब गुज़रा
ग़ुंचों का चटकना भी देखा,

होंटों की हँसी आँखों की नमी
और शाम सुहानी याद आई,

दुनिया से बचा कर इस दिल को
नींद आ गई करवट ले ले कर,

शाहीन कोई कहानी भूली हुई
ख़्वाबों की ज़बानी याद आई..!!

~उस्मान शाहीन

पोशीदा सब की आँख से दिल की किताब रख

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