मोहब्बत की रंगीनियाँ छोड़ आए
तेरे शहर में एक जहाँ छोड़ आए,
पहाड़ों की वो मस्त शादाब वादी
जहाँ हम दिल ए नग़्मा ख़्वाँ छोड़ आए,
वो सब्ज़ा वो दरिया वो पेड़ों के साए
वो गीतों भरी बस्तियाँ छोड़ आए,
हसीं पनघटों का वो चाँदी सा पानी
वो बरखा की रुत वो समाँ छोड़ आए,
बहुत दूर हम आ गए उस गली से
बहुत दूर वो आस्ताँ छोड़ आए,
बहुत मेहरबाँ थीं वो गुल-पोश राहें
मगर हम उन्हें मेहरबाँ छोड़ आए,
बगूलों की सूरत यहाँ फिर रहे हैं
नशेमन सर ए गुलसिताँ छोड़ आए,
ये एजाज़ है हुस्न ए आवारगी का
जहाँ भी गए दास्ताँ छोड़ आए,
चले आए उन रह गुज़ारों से जालिब
मगर हम वहाँ क़ल्ब ओ जाँ छोड़ आए..!!
~हबीब जालिब
























