इश्क़ सहरा है कि दरियाँ कभी सोचा तुमने
तुझसे क्या है मेरा नाता कभी सोचा तुमने ?
हाँ मैं तन्हा हूँ ये इक़रार भी करता हूँ
मगर किसने किया है तन्हा कभी सोचा तुमने ?
ये अलग बात है कि जताया नहीं मैंने तुझको
वरना कितना तुझको है चाहा कभी सोचा तुमने ?
तुझे आवाज़ लिखा, फूल लिखा, प्यार लिखा
मैंने क्या क्या तुझे लिखा कभी सोचा तुमने ?
मुतमअईन हूँ तुझे लफ्ज़ो की हरारत दे कर
मैंने तुम्हे कितना सोचा ज़रीन कभी सोचा तुमने ??
हमें सोचने की फुरसत कहाँ
हम तो तेरी चाहत की तफ़सीर लिखते है
पेश करतें है तुम्हेँ हर्फ़ ए अक़िदत
बस तुम्हेँ दिल की ताबीर लिखते है..!!
बेहतरीन,बहुत उम्दा
नवाज़िश 🌹🌹🌹