नख्ल ए ममनूअ के रुख दोबारा गया, मैं तो मारा गया
अर्श से फ़र्श पर क्यूँ उतारा गया ? मैं तो मारा गया,
जो पढ़ा था किताबो में वो और था, ज़िन्दगी और है
मेरा ईमान सारे का सारा गया, मैं तो मारा गया,
गम गले पड़ गया, ज़िन्दगी बुझ गई, अक्ल जाती रही
इश्क़ के खेल में क्या तुम्हारा गया, मैं तो मारा गया,
मुझको घेरा है तूफ़ान ने इस क़दर, कुछ न आये नज़र
मेरी कश्ती गई या किनारा गया, मैं तो मारा गया,
मुझको तू ही बता, दस्त ओ बाजू मेरे खो गए है कहाँ ?
ऐ मुहब्बत ! मेरा हर सहारा गया, मैं तो मारा गया…!!
~फ़र्ताश सईद