मैं सुन रहा हूँ जो दुनियाँ सुना रही है मुझे

मैं सुन रहा हूँ जो दुनियाँ सुना रही है मुझे
हँसी तो अपनी ख़ामोशी पे आ रही है मुझे,

मेरे वजूद की मिट्टी में ज़र नहीं कोई
ये एक चराग की लौ जगमगा रही है मुझे,

ये कैसे ख़्वाब की ख्वाहिश में घर से निकला हूँ
कि दिन में चलते हुए नींद आ रही है मुझे,

कोई सहारा मुझे कब संभाल सकता है
मेरी ज़मीन अगर डगमगा रही है मुझे,

मैं इस जहान में खुश हूँ मगर कोई आवाज़
नए जहान की जानिब बुला रही है मुझे..!!

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