मैं सुबह बेचता हूँ, मैं शाम बेचता हूँ

मैं सुबह बेचता हूँ, मैं शाम बेचता हूँ
नहीं मैं महज़ अपना काम बेचता हूँ,

इन बूढ़े दरख्तों को बेज़ान न समझो
मैं अभी तक पिता का नाम बेचता हूँ,

हुई सस्ती ये दुनियाँ, महँगा रहा मैं
अब दे इश्तिहार नया दाम बेचता हूँ,

सियासत का शौक़ जो पाला है मैंने
कभी रहीम तो कभी राम बेचता हूँ,

मुफ़लिसी भी क्या क्या रंग दिखाती है
मुँह से लगा हुआ मैं ज़ाम बेचता हूँ..!!

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