मैं रातें जाग कर अक्सर
वो यादें झाँक कर अक्सर
निशाँ जो छोड़ देती है
मेरी ही ज़ात पर अक्सर,
मैं जिसको खत लिखता था
क़िताबे फाड़ कर अक्सर
मेरी तजलील करती है
वो मुँह पर मार कर अक्सर,
वो ऊँगली जो फिरती थी
मेरे रुखसार पर अक्सर
वही ऊँगली अब उठती है
मेरे क़िरदार पर अक्सर,
दीदार ए य़ार करता था
छतो को टाप कर अक्सर
जुदाई ख़ूब सहता हूँ
मैं उसको हार कर अक्सर,
जब ज़िक्र ए यार चलता है
किसी भी बात पर अक्सर
मैं तेरा नाम लेता हूँ
हमशक्ल काँप कर अक्सर,
मैं ख़ुद से रोज़ कहता हूँ
न उसको याद कर अक्सर
दिल ए बेचैन की ज़िद्द है
कि उसकी बात कर अक्सर,
ग़ज़लें बेशुमार लिखता हूँ
फ़क़त उस चाँद पर अक्सर
एक वो कि इन्कार करती है
शब ए इक़रार पर अक्सर..!!