लेना देना ही क्या फिर ऐसे यारो से ?

लेना देना ही क्या फिर ऐसे यारो से ?
सुख दुःख भी जब बाँटने हो दीवारों से,

ज़िस्म के हर एक रोग से वाकिफ़ हूँ मैं
अब इतना मिलना जुलना है बीमारों से,

तोहफ़े में एक फूल नहीं भेजा था जिसे
आज उसके जनाज़े को भर दिया हारो से,

दुश्मन की हर चाल का अंदाज़ा है मुझे
डर लगता है लेकिन अपने रिश्तेदारों से,

लहज़ा मीठा पर बाते उसकी कड़वी थी
कीड़े निकले उसके दिए शक्कर पारो से..!!

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