क्यूँ पत्थर को दिल में बसाए बैठे हो ?
वो अपना था ही नहीं जिसे अपना बनाए बैठे हो,
दवा मौजूद है मगर ज़ख्मो को सजाए बैठे हो
क्यूँ दर्द के चरागों से दिल को जलाए बैठे हो ?
वो सदा ही तुम्हे नजर अंदाज करता रहता है
जिसकी चौखट पे तुम नज़रे जमाए बैठे हो,
क्यूँ किताब ए दिल के पन्नों में तस्वीर छुपाए बैठे हो
क्यूँ यादों की गर्दिशों में ख़ुद को रुलाए बैठे हो ?
क्यूँ मुहब्बत का रोग दिल को लगाए बैठे हो
क्यूँ किताब ए माझी के पीछे एक नाम छुपाए बैठे हो ?
क्यूँ मौत से ही पहले खुद को दफनायें बैठे हो ?
वो अपना था ही नहीं जिसे अपना बनाए बैठे हो..!!