क्या कहें ये जब्र कैसा ज़िंदगी के साथ है

क्या कहें ये जब्र कैसा ज़िंदगी के साथ है
हम किसी के साथ हैं और दिल किसी के साथ है,

ज़िंदा रखने की रिवायत आस्तीं के साँप की
एक न एक हमदर्द भी हर आदमी के साथ है,

अपनी अपनी मस्लहत है अपना अपना है मफ़ाद
वर्ना इस दुनिया में कब कोई किसी के साथ है ?

हो चुकी हैं मुश्किलात ए राह सब पर आश्कार
अब जो मेरे साथ है अपनी ख़ुशी के साथ,

वज़्अ दारी की क़सम है शहर में बस एक रईस
देखिए जब भी उसे ज़िंदादिली के साथ है..!!

~रईस रामपुरी

खुला है झूठ का बाज़ार आओ सच बोलें

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